Posts
Showing posts from October, 2021
हमारे गांव में हमारा क्या है! की समीक्षा, देवचंद्र भारती प्रखर
- Get link
- X
- Other Apps
#आत्मगाथा : हमारे गाँव में हमारा क्या है ? | https://dhammasahitya.blogspot.com/2020/07/blog-post_30.html अमित धर्म सिंह Amit Dharmsingh ने अपने इस काव्य-संग्रह में अपनी बाल्यावस्था में घटित घटनाओं की कहानी का वाचन काव्य के रूप में किया है । कविताएँ पढ़ते समय ऐसा अनुभव होता है, जैसे कवि सामने बैठकर अपनी कहानी सुना रहा हो । डॉ० जयप्रकाश कर्दम ने भी इसे ' काव्यमय आत्मकथा ' का नाम दिया है । इस काव्यमय आत्मकथा में कवि ने अपनी दरिद्रता और अपना संघर्ष यथार्थ रूप में अभिव्यक्त किया है । अमित धर्म सिंह की भाषा-शैली ग्रामीण परिवेश और बाल जीवन के अनुकूल है । उन्होंने मुजफ्फरनगर की क्षेत्रीय बोली का प्रयोग किया है । मुहावरों और लोकोक्तियों के भावानुकूल प्रयोग के साथ भाषा में भी प्रवाह है । उनकी शैली सरसता, रोचकता और नाटकीयता से परिपूर्ण कथा शैली है । बाल्यावस्था में अंबेडकरवादी विचारधारा से उनका जुड़ाव नहीं था, इसलिए उनकी कविताओं में विषमतावादी सामाजिक व्यवस्था के प्रति कहीं भी नकार, आक्रोश अथवा प्रतिरोध के स्वर मुखरित नहीं हुये हैं । ✍️ *देवचंद्र भारती 'प्रखर'* 📚📚📚📚📚📚📚📚📚...
हमारे गांव में हमारा क्या है! की समीक्षा, डा. रामनिवास
- Get link
- X
- Other Apps
समीक्षा हमारे गाँव में हमारा क्या हैः एक यथार्थ बोध कृति डाॅ.रामनिवास हमारे गाँव में हमारा क्या है! शीर्षक काव्य संग्रह के माध्यम से युवा कवि डा. अमित धर्मसिंह ने हिन्दी कविता में एक नया प्रयोग किया है- काव्य शैली की आत्मकथा। इसकी कविताएँ कल्पना प्रसूत नहीं बल्कि भोगे गए यथार्थ को अत्यंत मार्मिकता से समाज के सम्मुख प्रस्तुत करती है। समाज व्यवस्था में जब धनवानों का वर्चस्व और निर्धनों का हर तरह का शोषण इस सीमा तक चला जाए कि जीवन जीने की अनिवार्य जरूरतें भी पूरी न हो सके, तब जीवन जीना कितना दुष्कर हो जाता है। उसकी बानगी के तौर पर 'बचपन के पकवान' कविता में व्यक्त कंगाली से जूझते हुए भूखे बचपन का यथार्थ देखिए - "घर के सारे बर्तन टटोले जाते/खाली पाकर पटके जाते/ गुस्से में तमतमातें हुए/जंगल गयी माँ पर बड़बड़ाते।" बात यहीं पर खत्म नहीं होती। भूख एक ऐसा रोग है प्राणियों में, कि इसका उपचार स्वयं ही किसी न किसी प्रकार करन...
हमारे गांव में हमारा क्या है! की समीक्षा, पूनम तुषामड़
- Get link
- X
- Other Apps
दलित बचपन का आर्त स्वर : हमारे गाँव में हमारा क्या है! -डा. पूनम तुषामड़ डा. अमित धर्मसिंह द्वारा रचित कविता संग्रह 'हमारे गाँव में हमारा क्या है!' सन 2019 में 'बोधि प्रकाशन' जयपुर से प्रकाशित हुआ। संग्रह का आवरण पृष्ठ 'कुंवर रविंद्र ' जी ने तैयार किया है, जो अपनी सरलता के साथ शीर्षक को रेखांकित कर देता है। कवि ने ये काव्य संग्रह दलित बच्चों को समर्पित करते हुए लिखा है- "उन तमाम बच्चों को जिनका बचपन किसी उत्सव की तरह नहीं, किसी गहरे शोक की तरह बीतता है ..." सदियों के यातनापूर्ण और पीड़ादाई सफर के पश्चात् दलित समाज ने प्रखर संघर्ष के साथ अपनी अभिव्यक्ति को अपनी मुक्ति और स्वाभिमान का हथियार बनाकर प्रयोग करना प्रारम्भ किया है। डा.आंबेडकर ने भी दलितों को गाँव में इसी शोषण उत्पीड़न से मुक्त होने के लिए कहा था "दलितों गाँव छोड़ो!" दलित रचनाकारों ने दलित-जीवन के दग्ध अनुभवों को साहित्य की अलग-अलग विधाओं में व्यक्त करना प्रारम्भ किया। शुरुआती दौर में कविताएं एवं आत्मकथा ही मुख्य माध्यम बनी। दलितों द्वारा लिखी गई अनेक रचनाओं में दलित बच्चों क...
हमारे गांव में हमारा क्या है! की समीक्षा : कश्मीर सिंह
- Get link
- X
- Other Apps
पुस्तक_समीक्षा #हमारे_गांव_में_हमारा_क्या_है! एक यक्ष प्रश्न । - कश्मीर सिंह #सर्वप्रथम, हमारे गांव में हमारा क्या है! संग्रह की शीर्षक कविता का एक अंश देखिए - “ये खेत मलखान का है, वो ट्यूबवेल फूल सिंह की है, ये लाला की दुकान है, वो फैक्ट्री बंसल की है, ये चक धुम्मी का है, वो ताप्पड़ चौधरी का है, ये बाग़ खान का है, वो कोल्हू पठान का है, ये धर्मशाला जैनियों की है, वो मन्दिर पंडितों का है, कुछ इस तरह से जाना हमने अपने गाँव को l” “हमारे गाँव में हमारा क्या है ! ये हम आज तक नहीं जान पाए।” “उक्त काव्य पंक्तियों और कविता संग्रह के रचयिता हैं- अमित धर्मसिंह l अमित धर्मसिंह एक मँजे हुए कवि हैं। इनकी कविताएँ साहित्यिक अनुसन्धान केंद्र की प्रयोगशाला में तैयार होकर नहीं आयी बल्कि यथार्थ के धरातल पर समस्याओं से दो-दो हाथ करती, हृदय की हर धड़कन...
हमारे गांव में हमारा क्या है! की समीक्षा, कृष्ण सुकुमार
- Get link
- X
- Other Apps
समीक्षा पुस्तक-परिचय : "हमारे गाँव में हमारा क्या है!" ( कविता-संग्रह) कवि : श्री अमित धर्मसिंह प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर समीक्षक : कृष्ण सुकुमार दलित वर्ग के संघर्ष का प्रतिनिधित्व हमारे गांव में हमारा क्या है! संग्रह की 41 कविताओं में अपने गाँव में अपने परिवार की निर्धनता के बीच कवि ने अपनी बाल्यावस्था में जो कुछ जिया, सहन किया और भोगा, वो सब बिल्कुल सहजता और सरलता के साथ शब्दों में उकेरकर रख दिया है। गाँव के जीवन के यथार्थ, सामान्य दैनिक क्रियाकलापों के जीवंत और संवेदनशील चित्रण के बीच अभावग्रस्त और संघर्षशील दलित-जीवन की दयनीयता और बेचारगी का बेहद मार्मिकता के साथ एक करुण स्वर इन कविताओं में उभर आता है! यह करुणा कवि सायास पैदा नहीं करता, न वह कहीं इन स्थितियों के विरुद्ध किसी प्रकार का नारा या रोष रेखांकित करता है...बल्कि कोई भी भाव, दृश्य या स्थिति बिना काव्य बिंबों में उलझाये सीधे-सीधे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ठेठ ग्राम्य अँचल की बोलचाल म...
हमारे गांव में हमारा क्या है! की समीक्षा, रोहित कौशिक
- Get link
- X
- Other Apps
पुस्तक समीक्षा अभावग्रस्त जीवन के संघर्ष का काव्य -रोहित कौशिक आमतौर पर ग्रामीण जीवन को सहज, सरल और सुखद माना जाता है लेकिन सभी के लिए ग्रामीण जीवन उतना सहज, सरल और सुखद नहीं होता। ग्रामीण जीवन की भी अपनी जटिलताएँ और विसंगतियां हैं। जब हम सतही तौर पर शहरी जीवन के बरक्स ग्रामीण जीवन को देखते हैं तो हमें ये जटिलताएँ और विसंगतियाँ दिखाई नहीं देती हैं। यहाँ तक कि समृद्ध ग्रामीणों को भी गांव के जीवन में हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है लेकिन अभावों में जीवन जीने वाले गांव के आखिरी आदमी के जीवन में हरियाली कहीं नहीं है। वह दूसरों के जीवन में हरियाली पैदा कर खुद एक सूखा झाड़ बन जाता है। अमित धर्मसिंह ने अपने सद्यः प्रकाशित कविता संग्रह ‘हमारे गाँव में हमारा क्या है’ में अभावग्रस्त ग्रामीण जीवन का काव्य रचा है। हालांकि यह ग्रामीण दलित जीवन का आख्यान है लेकिन बड़ी बात यह है कि अमित धर्मसिंह ने दलित जीवन के संघर्ष को नारे ...
हमारे गांव में हमारा क्या है! की समीक्षाएं
- Get link
- X
- Other Apps
हमारे गांव में हमारा क्या है! की समीक्षाएं 1. हमारे गांव में हमारा क्या है! की विशेषता हमारे गांव में हमारा क्या है! की कविताएं मैंने सुनी भी हैं, पढ़ी भी हैं और समझी भी हैं। इन कविताओं के लिखे जाने से छपे जाने तक की मैं साक्षी रही हूं। यदि मुझ पर पड़े इन कविताओं के व्यक्तिगत प्रभाव को छोड़ दें तो इन कविताओं की विशेषता को बिंदुवार समझा जा सकता है। * कविताओं को पढ़ते हुए पाठक का बहुत तेजी से साधारणीकरण हो जाता है। पाठक को लगता ही नहीं कि ये कविताएं अमित धर्मसिंह की हैं, उसे लगता है कि जैसे समस्त कवताओं में वही विद्यमान है या उसी का गांव और बचपन विद्यमान है। * संग्रह की कविताएं किसी विचाधारा विशेष से प्रेरित दिखाई नहीं देती हैं। ग्रामीण परिवेश में शोषण का जो स्वरूप रहा है उसे बड़ी सादगी और ईमानदारी के साथ उजागर किया गया है। * इन कविताओं में शाब्दिक चमत्कार या भाषाई आडंबर बिल्कुल नहीं है। ठेठ हिन्दी और खड़ी बोली का जो ठाठ इन कविताओं में सर्वत्र विद्यमान है, उसमें भाव, विचार और चिंतन का सहज प्रवाह है। * संग्रह की कविताएं किसी भी प्रकार के अतिवाद में नहीं फंसती हैं। यही कारण है कि गैर ...
डिप्रेस्ड एक्सप्रेस के नवंबर 2021 के अंक में प्रकाशित मुकेश मानस पर लिखा मेरा संस्मरण
- Get link
- X
- Other Apps
संस्मरण मानस के मुकेश : मुकेश मानस डॉ. अमित धर्मसिंह बात सन् 2015 की है जब मैंने मित्र मनोज कुमार के कहने पर अपना एक शोध पत्र ‘हिन्दुत्व के प्रति प्रभाष जोशी का दृष्टिकोण’ मगहर पत्रिका में प्रकाशित होने के लिए यह कहते हुए भेजा था कि यह शोध पत्र पहले भी दो पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के लिए भेजा जा चुका है, लेकिन किसी ने छापा नहीं। शायद 2014 के बाद जो राजनीतिक परिस्थितियां बदली उसका साहित्य और साहित्यकारोें पर भी गहरा असर हुआ था। बहरहाल! अप्रैल 2015 में मगहर का नौवा अंक प्रकाशित होकर आया। अकादमिक बाध्यता के चलते इसमें मेरा शोध पत्र मेरे अकादमिक नाम अमित कुमार के नाम से प्रकाशित हुआ था। यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ कि जिस शोध पत्र को किन्हीं दो पत्रिकाओं ने स्थान नहीं दिया उसे मगहर ने अनुक्रम में दूसरे ही स्थान पर प्रकाशित किया है। मगहर के स...