टिप्पणी

अमित धर्मसिंह की कविताओं पर विशाल गोयल की संक्षिप्त टिप्पणी..
(संघर्ष द्वारा) यथार्थ से जीतकर काेई बड़ा नहीं हाेता, सपनाें काे खाेकर बाैना जरूर हाे जाता है। बधाई भाई तुम्हारी दृष्टि कूडी के फूलों तक पहुंचती है नहीं ताे समकालीनता की नकली छवियों से ग्रस्त कविता पता नहीं कैसे कैसे ट्रीटमेंट देती इस खालिस और दमदार संघर्ष काे। साैंदर्य माैत है कुरूपता की बिना कुरूपता काे काेसे। किसी भी तरह के शक्तिमान रूपवान में सामर्थ्य नहीं अरूपवान साैंदर्य हाेने की। वैसे संघर्ष के साैंदर्य विमर्श भरे पड़े है...

साहित्य न मंच है ना माेर्चा, साैंदर्य का हर परिस्थिति में संधान है, चाहे वह संघर्ष का हाे या दमन का हाे। और साहित्य ना काेई पक्ष है जिसका विपक्ष हाेना अनिवार्य हाे और न ही यह काेई थीसिस है जिसकी एंटीथिसिस गढ़ने की फिराक में असहाय हीन सा गुस्सा लगातार रहता हाे। प्रकियाओं की पहचान न हाे सकने की असमर्थता मनुष्याें काे वर्गाें में जांत में और फिर आखिर में व्यक्तिरुप में गरियाती है। दूसराें से लड़ने का मैदान बाहर है, साहित्य खुद से लड़ने की जगह है। अमित जानता है घृणा से कैसा साहित्य लिखा जा सकता है। अमित प्यार से समझाना जानता है उन लोगों काे भी जाे उसे विचाराें या कुविचाराें की किसी खास धारा में प्रशिक्षण देने के लिए तड़फ रहे हैं...
                                        -विशाल गोयल
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