पत्रकार
एक पत्रकार ऐसा भी...के सन्दर्भ में...
21 जून 1967 को ग्वालियर में दिनेश का जन्म हुआ। दिनेश जब 6 माह का था तभी उसके गरीब माँ -बाप रोजगार की तलाश में मुज़फ्फर नगर के गांधी कालोनी में आकर रहने लगे थे। उस समय दिनेश से बड़े उसके दो भाई और एक बहन थी। बाद में उससे छोटा एक भाई और एक छोटी बहन हुई। किराये के मकान में रहने और पिता मज़दूरी पेशे वाले होने के कारण घर में फाकाकशी बनी रही। इसके चलते दिनेश मात्र आठवीं तक ही पढ़ सका। दूसरे भाई-बहन भी यथोचित शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाये और जल्दी ही पेट की आग के शिकार होने लगे। अपनी स्थाई गरीबी के चलते बमुश्किल एक बड़े भाई और एक बड़ी बहन की ही शादी जो पायी बाकि आज तक अविवाहित हैं। शादीशुदा बहन और भाई अपने घरबार के हो गए। बाकि चार एक साथ रहने लगे। काफी मेहनत मशक्कत से गाँधी कालोनी में 41 गज में बने दो टूटे-फूटे कमरे वाले मकान को खरीदकर उसे रहने लायक बनाया। इस बीच दिनेश के माँ-बाप भी चल बसे। आज चारों अविवाहित भाई-बहन ज्यों-त्यों अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
दिनेश जब पढ़ रहा था तो उसका सपना वकील बनने का था। मगर शिक्षा छूट जाने पर सपना हक़ीक़त न बन सका। दिनेश द्वारा आइसक्रीम आदि बेचकर पेट तो पालने का बंदोबस्त हो जाता था किंतु कुछ और भी था जो दिनेश समाज के लिये करना चाहता था। अपनी आर्थिक तंगियों के बावजूद दिनेश के हौसले बुलंद थे। इसके चलते उसने थोड़े-थोड़े पैसे जोड़कर सन 2003 में 20 हज़ार रूपये जमा किये। इन रुपयों से दिनेश ने 26 जनवरी के दिन गंगा भारती पब्लिक स्कूल के बच्चों को कॉपी पेंसिल आदि अन्य पढ़ाई की वस्तुएं पुरस्कार स्वरुप वितरित कीं। दिनेश इस तरह समाज सेवा-कार्यों में रूचि लेने लगा। दिनेश की इच्छा थी कि वह बच्चों और महिलाओं के लिये कुछ ऐसे कानून पारित करवायें जिनसे दोनों का जीवन खुशहाल और सुरक्षित हो सके। अपनी इसी इच्छा के चलते दिनेश ने उनके हक़ों के लिये लिखना शुरू किया। सर्वप्रथम 2010 में उसने ब्लेड मारक गिरोह के खिलाफ गले में लिखित तख्ती लटकाकर लोगों को जागरूक किया। इससे उसने पाया कि लोगों को इस रूप में भी जागरूक किया जा सकता है और यह वही सामाजिक कार्य है जिसे वह अपने मिशन के रूप में कर सकता है। इस तरह दिनेश ने "सत्यदर्शन" के नाम से हस्तलिखित अख़बार लिखकर जिले के प्रमुख स्थानों पर चस्पा करना शुरू कर दिया। बाद में इसी का नाम बदलकर दिनेश ने "विद्यादर्शन" रख दिया। जिसे वह आज तक बगैर रजिस्ट्रेशन के अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार के तहत यथावत चला रहा है। अल्पशिक्षा और घर में पुस्तकों के अभाव के बाद अख़बार में दिनेश की प्रखर और तार्किक समझ पर्याप्त झलकती है। हालाँकि आर्थिक तंगी के कारण कई-कई दिन उसका अख़बार निकल भी नहीं पाता । मगर धन के टूटते-जुड़ते क्रम में उसकी कोशिश जारी रहती है।
दिनेश बेहद स्वाभिमानी और दयालु प्रवृत्ति का आदमी है। एक के चलते वह कभी भी किसी से न तो आर्थिक मदद की गुहार लगाता है और न किसी की दी हुई किसी भी प्रकार की मदद को स्वीकार करता है। सिर्फ किसान यूनियन से एक बार पचास रुपये की मदद लेने को दिनेश जरूर स्वीकारता है। वह भी इसलिए कि बहुत से किसानों के दबाव और आग्रह के आगे वह मज़बूर हो गया था। दयालु प्रवृत्ति के कारण वह अख़बार निकालने के अतिरिक्त अन्य सामाजिक सेवा के कार्य भी अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुसार करता रहता है। यथा एक तेजाब से पीड़ित घायल गाय को सरकारी उपचार से ठीक करवाया। एक लिंग कटे अज्ञात घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुँचाया। विभिन्न सामाजिक समस्याओं से प्रशासन को अवगत कराना और सम्बंधित सुझाव देने का कार्य भी दिनेश यथासमय करता रहता है। कई बार तो जरुरत पड़ने पर वह सम्बंधित समस्याओं के सन्दर्भ में सीएम और पीएम तक को भी फेक्स करता है। यह बात और है कि वह जानता है कि उसके अधिकांश सुझाव शासन-प्रशासन द्वारा रद्दी की टोकरी में फेंक दिए जाते हैं। मगर वह इससे ज़रा-सा भी निराश नहीं है। उलटे पारिवारिक विरोध अतिवादी अभाव के बावजूद दिनेश अपने मिशन को विस्तार देना चाहता है। उसका सपना है कि वह देश में व्यापक स्तर पर एक ऐसा माहौल बनाने में सहायक हो जिसमें क्राइम न हो। लोग अपने घरों को खुला छोड़कर कहीं भी आ-जा सके। किसी को भी किसी भी प्रकार की चोरी अथवा लूटपाट का डर न हो। बेटी और बहुएं किसी भी वक़्त घर आ जा सके। उन्हें किसी भी प्रकार का डर न हो और न ही उन पर किसी प्रकार की बंदिशे हों।
अंत में जिन मित्रों ने दिनेश का पता और नंबर माँगा है वे दिनेश के पास मोबाइल न होने के कारण दिनेश के पते से ही संतोष करें- दिनेश कुमार, मकान नंबर-492, गाँधी कालोनी, मुज़फ़्फ़रनगर (उत्तर प्रदेश), पिन कोड- 251001 । द्वारा - अमित धर्मसिंह।।। साभार।।।
जिन मित्रों ने दिनेश की मेहनत को इतना सम्मान और प्रचार-प्रसार दिया, उन सबके प्रति मैं अपनी और दिनेश की ओर से हृदय से आभारी हूँ। दिनेश आपका स्वयं आभार व्यक्त करता यदि उसके पास संबधित साधन होता। मैंने हाल ही में उसे जब उस पर लगायी यह पोस्ट दिखाई तो वह अत्यंत भावुक हो गया। वह शायद खुद को इतना कृतज्ञ और आभारी पा रहा था कि उसका वज़ूद तिनके की तरह काँप रहा था। वह आप सबके इस स्नेह से इतना खुश था कि उससे कुछ कहते न बन रहा था। बड़ी आत्मीयता के साथ हम दोनों ने एक चाय के स्टाल पर चाय पी। चाय पीने के बाद दिनेश बोला "अमित जी मैं आज फिर शर्मिंदा हूँ क्योंकि आज फिर मेरे पास चाय के पैसे नहीं हैं। एक बार पहले भी हमने साथ-साथ चाय पी थी तब भी मेरे पास पैसे नहीं थे। बीच में एक दिन मैंने आपको चाय का ऑफर दिया था। उस दिन मेरे पास 250-300 रूपये थे मगर उस दिन आप जल्दी में थे और मेरे रोकने से रुके नहीं थे । मैं आपके स्नेह को ठुकरा नहीं सकता हूँ इसलिये आज दूसरी बार शर्मिंदगी का भार उठा रहा हूँ लेकिन जल्दी ही मैं इस भार से मुक्त होने की कोशिश करूँगा।" ऐसे हैं दिनेश। स्वाभाविक है कि ऐसे दिनेश के बारे में लोग अधिक जानना चाहे।
इस पोस्ट के माध्यम से भी बहुत से मित्रों ने दिनेश के बारे में अधिक जानने की इच्छा व्यक्त की। कुछ ने उसका पता माँगा। कुछ ने उसे आर्थिक मदद दिए जाने की बात रखी। कुछ ने उसके अख़बार को सोशल मीडिया पर प्रसारित किये जाने की मांग रखी। मैं फ़िलहाल इन सभी सन्दर्भों में खुद को केवल दिनेश के बारे में थोड़ी और जानकारी उपलब्ध करवाने में ही सक्षम पा रहा हूँ।21 जून 1967 को ग्वालियर में दिनेश का जन्म हुआ। दिनेश जब 6 माह का था तभी उसके गरीब माँ -बाप रोजगार की तलाश में मुज़फ्फर नगर के गांधी कालोनी में आकर रहने लगे थे। उस समय दिनेश से बड़े उसके दो भाई और एक बहन थी। बाद में उससे छोटा एक भाई और एक छोटी बहन हुई। किराये के मकान में रहने और पिता मज़दूरी पेशे वाले होने के कारण घर में फाकाकशी बनी रही। इसके चलते दिनेश मात्र आठवीं तक ही पढ़ सका। दूसरे भाई-बहन भी यथोचित शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाये और जल्दी ही पेट की आग के शिकार होने लगे। अपनी स्थाई गरीबी के चलते बमुश्किल एक बड़े भाई और एक बड़ी बहन की ही शादी जो पायी बाकि आज तक अविवाहित हैं। शादीशुदा बहन और भाई अपने घरबार के हो गए। बाकि चार एक साथ रहने लगे। काफी मेहनत मशक्कत से गाँधी कालोनी में 41 गज में बने दो टूटे-फूटे कमरे वाले मकान को खरीदकर उसे रहने लायक बनाया। इस बीच दिनेश के माँ-बाप भी चल बसे। आज चारों अविवाहित भाई-बहन ज्यों-त्यों अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
दिनेश जब पढ़ रहा था तो उसका सपना वकील बनने का था। मगर शिक्षा छूट जाने पर सपना हक़ीक़त न बन सका। दिनेश द्वारा आइसक्रीम आदि बेचकर पेट तो पालने का बंदोबस्त हो जाता था किंतु कुछ और भी था जो दिनेश समाज के लिये करना चाहता था। अपनी आर्थिक तंगियों के बावजूद दिनेश के हौसले बुलंद थे। इसके चलते उसने थोड़े-थोड़े पैसे जोड़कर सन 2003 में 20 हज़ार रूपये जमा किये। इन रुपयों से दिनेश ने 26 जनवरी के दिन गंगा भारती पब्लिक स्कूल के बच्चों को कॉपी पेंसिल आदि अन्य पढ़ाई की वस्तुएं पुरस्कार स्वरुप वितरित कीं। दिनेश इस तरह समाज सेवा-कार्यों में रूचि लेने लगा। दिनेश की इच्छा थी कि वह बच्चों और महिलाओं के लिये कुछ ऐसे कानून पारित करवायें जिनसे दोनों का जीवन खुशहाल और सुरक्षित हो सके। अपनी इसी इच्छा के चलते दिनेश ने उनके हक़ों के लिये लिखना शुरू किया। सर्वप्रथम 2010 में उसने ब्लेड मारक गिरोह के खिलाफ गले में लिखित तख्ती लटकाकर लोगों को जागरूक किया। इससे उसने पाया कि लोगों को इस रूप में भी जागरूक किया जा सकता है और यह वही सामाजिक कार्य है जिसे वह अपने मिशन के रूप में कर सकता है। इस तरह दिनेश ने "सत्यदर्शन" के नाम से हस्तलिखित अख़बार लिखकर जिले के प्रमुख स्थानों पर चस्पा करना शुरू कर दिया। बाद में इसी का नाम बदलकर दिनेश ने "विद्यादर्शन" रख दिया। जिसे वह आज तक बगैर रजिस्ट्रेशन के अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार के तहत यथावत चला रहा है। अल्पशिक्षा और घर में पुस्तकों के अभाव के बाद अख़बार में दिनेश की प्रखर और तार्किक समझ पर्याप्त झलकती है। हालाँकि आर्थिक तंगी के कारण कई-कई दिन उसका अख़बार निकल भी नहीं पाता । मगर धन के टूटते-जुड़ते क्रम में उसकी कोशिश जारी रहती है।
दिनेश बेहद स्वाभिमानी और दयालु प्रवृत्ति का आदमी है। एक के चलते वह कभी भी किसी से न तो आर्थिक मदद की गुहार लगाता है और न किसी की दी हुई किसी भी प्रकार की मदद को स्वीकार करता है। सिर्फ किसान यूनियन से एक बार पचास रुपये की मदद लेने को दिनेश जरूर स्वीकारता है। वह भी इसलिए कि बहुत से किसानों के दबाव और आग्रह के आगे वह मज़बूर हो गया था। दयालु प्रवृत्ति के कारण वह अख़बार निकालने के अतिरिक्त अन्य सामाजिक सेवा के कार्य भी अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुसार करता रहता है। यथा एक तेजाब से पीड़ित घायल गाय को सरकारी उपचार से ठीक करवाया। एक लिंग कटे अज्ञात घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुँचाया। विभिन्न सामाजिक समस्याओं से प्रशासन को अवगत कराना और सम्बंधित सुझाव देने का कार्य भी दिनेश यथासमय करता रहता है। कई बार तो जरुरत पड़ने पर वह सम्बंधित समस्याओं के सन्दर्भ में सीएम और पीएम तक को भी फेक्स करता है। यह बात और है कि वह जानता है कि उसके अधिकांश सुझाव शासन-प्रशासन द्वारा रद्दी की टोकरी में फेंक दिए जाते हैं। मगर वह इससे ज़रा-सा भी निराश नहीं है। उलटे पारिवारिक विरोध अतिवादी अभाव के बावजूद दिनेश अपने मिशन को विस्तार देना चाहता है। उसका सपना है कि वह देश में व्यापक स्तर पर एक ऐसा माहौल बनाने में सहायक हो जिसमें क्राइम न हो। लोग अपने घरों को खुला छोड़कर कहीं भी आ-जा सके। किसी को भी किसी भी प्रकार की चोरी अथवा लूटपाट का डर न हो। बेटी और बहुएं किसी भी वक़्त घर आ जा सके। उन्हें किसी भी प्रकार का डर न हो और न ही उन पर किसी प्रकार की बंदिशे हों।
अंत में जिन मित्रों ने दिनेश का पता और नंबर माँगा है वे दिनेश के पास मोबाइल न होने के कारण दिनेश के पते से ही संतोष करें- दिनेश कुमार, मकान नंबर-492, गाँधी कालोनी, मुज़फ़्फ़रनगर (उत्तर प्रदेश), पिन कोड- 251001 । द्वारा - अमित धर्मसिंह।।। साभार।।।
दिनेश कुमारजी को उनके समर्पित प्रयास के लिए कोटि कोटि प्रणाम ।
ReplyDeleteअरुण कुमार गुप्ता 'मंगला'अग्रवाल
आभार
Deletehttps://m.facebook.com/story.php?story_fbid=877481829089997&id=100004845638878
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