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एस. एन. प्रसाद द्वारा लिखी गई 'हमारे गांव में हमारा क्या है!' की समीक्षा

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                  एस एन प्रसाद, लखनऊ, उत्तर प्रदेश  पुस्तक की समीक्षा --------------------------------–-------;  पुस्तक का नाम- हमारे गांव में हमारा क्या है (काव्यात्मक आत्मकथा) लेखक/रचयिता- डॉ0 अमित धर्मसिंह समीक्षक- एस.एन.प्रसाद ----------------------------------------------------         व्यक्ति जहां जन्म लेता है, जिस मिट्टी, परिवेश तथा परिस्थितियों में पलता बढ़ता है, उनकी खट्टी मीठी यादे और अनुभव आजीवन उसके स्मृति पटल पर हमेशा तरोताजा रहती हैं। भारत गांवों का देश है।इसकी सर्वाधिक आबादी आज भी गांवों में ही रहती है। इसीलिए अनेकानेक साहित्यकारों द्वारा साहित्य के विभिन्न विधाओं के माध्यम से अपनी सोच और समझ के दायरे में गांवों का चित्रण किया गया है। गैर दलित साहित्यकारों विशेषकर कवियों ने गांवों को आदर्श रूप में चित्रित किया हैं।उन्हें गांव में रहनेवाले सदियों से उपेक्षित,शोषित, पीड़ित, साधन विहीन, निर्धन,सामंती व्यवस्था की क्रूरता, जाति-पाति, ऊंच -नीच,छुआ -छूत आदि सामाजिक बुराइयाँ/विसंगतियां कभी दिखाई नहीं देती। य...