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Showing posts from December, 2018

कविताएं

अमित धर्मसिंह की आठ कविताएं १ बहनें बहनें शांत हैं सौम्य और प्रसन्नचित्त भी; उनके चेहरे की उजास कम नहीं हुई दुनियाभर की झुलसाहट के बाद । बहनें हमारे हाथ में बाँधती हैं रक्षासूत्र; करती हैं कामना हमारी सुरक्षा की । बहनें हमारे घर में नहीं रहतीं ख्याल में नहीं आतीं सपने में भी कहाँ आती हैं बहनें; पता नहीं किस चोर दरवाज़े से ले जाती हैं हमारी बलाएँ । माँ की नसीहत पिता की डाँट भाई की झल्लाहट के बाद भी खुश दिखतीं हैं बहनें हमारी ख़ुशी के लिए। हमारी ख़ुशी के लिये अपनी ख़ुशी अपने सपने अपना मन मारती हैं बहनें बहनें हमारे पास नहीं साथ होती हैं अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराये बगैर । सच ! हमसे छोटी हों या बड़ी ; हर हाल में हमसे बड़ी होती हैं बहनें ।। २ जीवंत दस्तावेज़               (पुरखों को समर्पित) मैंने तुम्हें बक्से में ढूंढा, शायद तुम्हारा कोई फोटो हो, नहीं मिला, घर में कभी नहीं रही कोई एलबम। अख़बारों में कहाँ छपे तुम जो ढूंढता कतरने, अखबार तो घर आया तक नहीं, आता भी क्यों तुम पढ़े-लिखे ही कहाँ थे। स्कूल, मं...

कविताएं

अमित धर्मसिंह की पांच कविताएं... १.वे जब पैदा होते हैं वे जब पैदा होते हैं तो उनकी आँखों में दूधिया चमक होती है सही पोषण के अभाव में वह धीरे-धीरे पीली पड़ती जाती है और उनकी आँखों की ज़मीन बंज़र हो उठती है जो सपने बोने के नहीं दफनाने के काम आती है। वे जब पैदा होते हैं तो उनकी रीढ़ सीधी होती है कंधों पर जरूरत से ज़्यादा भार से वह धीरे-धीरे झुकती जाती है, जो सीधे खड़े होकर नहीं झुककर चलने के काम आती है। वे जब पैदा होते हैं तो उनके रंग उजियारे होते हैं गंदगी उगलते समाज में रहकर उनका रंग धीरे-धीरे धूमिल होता जाता है जो पहचान बनाने के नहीं छुपाने के काम आता है। वे जब पैदा होते हैं तो उनका मस्तिष्क कोरी स्लेट होता है लगातार स्याही पोते जाने से वह इतना स्याह हो उठता है कि वह मोती जैसे अक्षर काढ़ने के नहीं स्याही पोतने के ही काम आता है। वे जब पैदा होते हैं तो एक समृद्ध दुनिया में आँख खोलते हैं बड़े होने के साथ धीरे-धीरे उन्हें अहसास होता है कि इस भरी-पूरी दुनिया में वे कितने अकेले और कंगाल हैं उनके पैदा होने से पहले ही उनका सब कुछ छीना जा चुका होता है अब उनकी ...