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डॉ. अमित धर्मसिंह के ग़ज़ल संग्रह बग़ैर मक़्ता का प्राथमिक लोकार्पण, तेजपाल सिंह 'तेज', डॉ. गीता कृष्णांगी, अनित कुमार, 02/12/2025

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भूमिका ग़ज़ल की परंपरा और ‘बग़ैर मक्ता’ का स्थान                          तेजपाल सिंह ‘तेज’ ग़ज़ल : उत्पत्ति, स्वरूप और परंपरा:  ग़ज़ल एक ऐसी काव्य–विधा है, जो अपने संक्षिप्त रूप में भाव–संपन्नता, लय, संगीतिकता और संवेदना की गहराई का अप्रतिम उदाहरण है। अरबी–फारसी से होकर यह विधा भारतीय उपमहाद्वीप में आई, जहाँ इसने उर्दू और हिंदी दोनों भाषाओं में अपनी समृद्ध परंपरा विकसित की। ग़ज़ल की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह संक्षिप्त शब्दों में अनंत अर्थों का विस्तार करती है। दो मिसरों का एक शेर ही किसी पूरे जीवन–अनुभव का सार बन जाता है। प्रेम, विरह, सौंदर्य, आध्यात्मिकता, समाज और मनुष्य की नियति — इन सबका संक्षेप ग़ज़ल में होता है। भारतीय परंपरा में ग़ज़ल केवल प्रेम की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि आत्मा के एकांत की आवाज़ भी रही है। मीर, ग़ालिब, फैज़, फिराक़, जोश, और आगे चलकर दुष्यंत कुमार, निदा फ़ाज़ली, बशीर बद्र, गोपालदास ‘नीरज’, अदम गोंडवी — सभी ने ग़ज़ल को समय, समाज और मनुष्य के साथ जोड़ा। इस परंपरा में अमित धर्मसिंह की कृति “बग़ैर मक्...

शिक्षक दिवस पर मिला सम्मान पत्र और हिंदी दिवस पर अमर उजाला में हुई कवरेज

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डॉ. अमित धर्मसिंह और उनकी पुस्तकों की अखबारों आदि में हुई कुछ कवरेज

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